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आज की राजनीतिक कविता: राजनीतिक चक्कर में
प्रेम के बाजार में हैं राजनीति के नाटक,
भ्रष्ट नेता बने सितारे, यहाँ सब हैं प्रस्तावक।
वादे लड़ाते हैं विरोधी, मुस्कान में छुपा ग़म,
डिमाक्रेसी के रंग में, फिर भी हैं हम सब भ्रांत।
योजनाएं बनाई जाती हैं, हर बार कुछ नया करने की कोशिश,
पर बिना कारगर नेतृत्व, रह जाता है सब व्यर्थ।
पेपर लीक का खेल है, राजनीति का एक हिस्सा,
सोचो तो सही, या फिर यह भी है कोई चुका।
बेरोजगारी की चुनौती, बढ़ती जा रही दिन पर दिन,
नौजवानों के सपनों को, कर रही है ये तक़दीर थोकरें।
सब कुछ है हंसी-मजाक में, पर सच्चाई का दर्द है,
राजनीतिक चक्कर में, जनता है जो हर बार मुक़द्दर का मार्गदर्शक।
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