भारत ने BRICS व्यापार में डॉलर की जगह रुपये को अपनाया | Breaking News1

ब्रेकिंग न्यूज़: भारत ने अमेरिकी डॉलर के बजाय BRICS देशों के साथ व्यापार के लिए रुपये को अपनाया

🗓 दिनांक: 27 अगस्त 2025 | समय: रात 10:09 IST | Twspost

भारत ने आज एक बड़े आर्थिक कदम के तहत BRICS देशों (ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका) के साथ व्यापार के लिए अमेरिकी डॉलर की जगह भारतीय रुपये (INR) को आधिकारिक रूप से अपनाने की घोषणा की है। यह निर्णय अमेरिका द्वारा भारत पर लगाए गए 50% शुल्क के जवाब में लिया गया है।


पृष्ठभूमि और कारण

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने भारत से आयातित अधिकांश वस्तुओं पर शुल्क को 25% से बढ़ाकर 50% कर दिया, जो 27 अगस्त 2025 से लागू हुआ। यह कदम रूस से भारत के सस्ते तेल आयात को लेकर उठाया गया।

भारत ने इसे अनुचित और एकतरफा बताते हुए रुपये आधारित व्यापार की घोषणा की। भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने 5 अगस्त 2025 को परिपत्र जारी किया, जिसमें बैंकों को Special Rupee Vostro Accounts (SRVAs) खोलने की अनुमति दी गई।


RBI की नई नीति

RBI के नए दिशानिर्देशों के तहत, अब बैंकों को पूर्व अनुमति के बिना SRVAs खोलने की छूट दी गई है, जो जुलाई 2022 के पिछले आदेश का विस्तार है। इस ढांचे के तहत, निर्यात और आयात अब रुपये में चालान और निपटान के लिए उपलब्ध हैं, और विनिमय दर बाजार बलों द्वारा निर्धारित की जाएगी। यह कदम न केवल व्यापारिक लेनदेन को आसान बनाएगा, बल्कि डॉलर पर निर्भरता को कम करेगा, जिसकी वैश्विक व्यापार में हिस्सेदारी अभी भी 88% है (बैंक फॉर इंटरनेशनल सेटलमेंट्स, 2023 डेटा)।

  • बैंकों को अब SRVAs खोलने के लिए पूर्व अनुमति की आवश्यकता नहीं होगी।

  • निर्यात और आयात का चालान और निपटान रुपये में किया जा सकेगा।

  • विनिमय दर बाजार बलों के अनुसार तय होगी।

  • डॉलर पर निर्भरता कम होगी और लेनदेन आसान बनेंगे।

(BIS डेटा 2023 के अनुसार, वैश्विक व्यापार में डॉलर की हिस्सेदारी 88% है।)


विदेश मंत्रालय का स्पष्टीकरण

मंत्रालय का स्पष्टीकरणहालांकि, विदेश मंत्रालय (MEA) ने 22 अगस्त 2025 को स्पष्ट किया कि डी-डॉलराइजेशन भारत की वित्तीय नीति का हिस्सा नहीं है। MEA के प्रवक्ता रंधीर जायसवाल ने कहा, “हमने पहले भी इस मुद्दे पर अपनी स्थिति स्पष्ट कर दी है। डी-डॉलराइजेशन भारत की आर्थिक, राजनीतिक या रणनीतिक नीति का हिस्सा नहीं है।” यह संकेत देता है कि यह कदम शुल्क के जवाब में एक व्यावहारिक निर्णय है, न कि डॉलर को पूरी तरह से हटाने का प्रयास। भारत पहले से ही रूस और यूएई जैसे देशों के साथ स्थानीय मुद्राओं में व्यापार कर रहा है, जो इस नीति को मजबूत करता है।


वैश्विक प्रभाव

इस कदम से अमेरिकी डॉलर की वैश्विक प्रभुता पर सवाल उठ रहे हैं, जिसकी हिस्सेदारी अंतर्राष्ट्रीय विदेशी मुद्रा भंडार में 20 साल के निम्न स्तर 58% पर है (IMF, Q4 2022)। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर BRICS देश स्थानीय मुद्राओं में व्यापार बढ़ाते हैं, तो अमेरिकी ट्रेजरी बॉन्ड की मांग कम हो सकती है, जिससे अमेरिकी अर्थव्यवस्था पर असर पड़ सकता है। हालांकि, भारत का यह कदम पूरी तरह से डॉलर को हटाने के बजाय विविधता लाने और लेनदेन लागत को कम करने पर केंद्रित है।


भारतीय अर्थव्यवस्था पर असर

नई नीति से भारत के निर्यातकों को अमेरिकी बाजार में चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है, खासकर वस्त्र, रत्न-आभूषण और समुद्री खाद्य क्षेत्रों में, जहां अमेरिका 87.3 बिलियन डॉलर का आयात करता है (US ट्रेड रिप्रेजेंटेटिव, 2024 डेटा)। हालांकि, कुछ उत्पादों जैसे स्मार्टफोन को अभी शुल्क से छूट दी गई है। गोल्डमैन सachs के मुख्य भारत अर्थशास्त्री सन्तनु सेनगुप्ता ने चेतावनी दी है कि यदि 50% शुल्क जारी रहे तो भारत का सकल घरेलू उत्पाद (GDP) विकास दर 6.5% से नीचे 6% तक गिर सकता है।


राजनीतिक प्रतिक्रियाएँ

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस स्थिति में आत्मनिर्भरता पर जोर देते हुए कहा, “हम पर दबाव बढ़ सकता है, लेकिन हम इसे सहन करेंगे।” विपक्षी नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि 2.17 लाख करोड़ रुपये के नुकसान का अनुमान है, और कपास किसानों सहित कई क्षेत्रों में नौकरियां खतरे में हैं।

भारत का यह कदम केवल एक आर्थिक नीति नहीं बल्कि एक भू-राजनीतिक संदेश भी है। डॉलर की प्रभुता तुरंत खत्म नहीं होगी, लेकिन यह निर्णय निश्चित रूप से दुनिया को बहुध्रुवीय वित्तीय व्यवस्था की ओर धकेलता है।


Sources: RBI परिपत्र, MEA बयान, IMF, BIS, विभिन्न समाचार रिपोर्ट्स

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