Rautia; रौतिया इतिहास में क्षत्रिय लोगों की उपस्थिति लड़ाकू भूमिका के रूप में होती है, यह समुदाय राजपूत से संबंधित है।
रौतिया समुदाय मुख्य रूप से झारखंड, ओडिशा, छत्तीसगढ़ और अन्य राज्य में स्थित है, जिसे हम आम तौर पर जानते हैं कि इतिहास में क्षत्रिय लोगों की उपस्थिति लड़ाकू भूमिका के रूप में होती है, यह समुदाय राजपूत से संबंधित है। आजकल यह समुदाय हम देखते हैं कि वे दुर्लभ हैं लेकिन भारत में कुछ हिस्से में हम इस समुदाय की भारी उपस्थिति प्राप्त कर सकते हैं, वे ग्रामीण और शहरी क्षेत्र में भी रहते हैं रौतिया समुदाय का विकास कम है इसलिए जनसंख्या घनत्व अन्य समुदाय की तुलना में कम है
रौतिया जाति के बारे में जानकारी
- रौतिया जाति के लोगों की परंपराओं के अनुसार, इस समुदाय ने राजपूत राजकुमार की मदद की थी और उनकी रक्षा की थी. उन्हें इनाम के तौर पर लोहरदग्गा और जशपुर क्षेत्र में ज़मीन दी गई थी.
- रौतिया नाम, रावत से संबंधित है जिसका मतलब होता है राजकुमार. यह राजाओं के रिश्तेदारों द्वारा वहन की जाने वाली उपाधि भी है.
- रौतिया जाति के लोग हिंदी की सादरी बोली बोलते हैं.
- रौतिया जाति को एसटी का दर्जा देने की मांग की गई थी.
- केंद्रीय जनजातीय मामलों की राज्यमंत्री रेणुका सिंह ने रौतिया समाज के लोगों को जल्द ही जनजाति का दर्जा दिलाने का भरोसा दिलाया था.
- झारखंड के मुख्यमंत्री रघुवर दास ने रौतिया और खंगार को राज्य की अनुसूचित जनजाति (अजजा) में शामिल किये जाने के संबंध में अपनी मंज़ूरी प्रदान कर दी थी.
Rautia community is mainly located in Jharkhand, Odisha, Chhattisgarh and other state, which we generally know is the presence of Kshatriya people in the history as a combat role, this community is related to Rajput. Nowadays this community we see they are rare but in some part of India we can get huge presence of this community they live in rural and city area also Rautia community development is less so population density is less than other community
रौतिया जाति का इतिहास और उत्पत्ति
रौतिया नाम रावत से संबंधित है जिसका अर्थ है राजकुमार और राजाओं के रिश्तेदारों द्वारा वहन की जाने वाली एक उपाधि भी है। उनके प्रमुख सैन्य सेवा की शर्त पर छोटा नागपुर के राजा की संपत्ति का मालिक थे ।
उनकी परंपराओं के अनुसार, समुदाय ने राजपूत राजकुमार की मदद और रक्षा की, जिसे लोहरदग्गा, जशपुर क्षेत्र में इनाम के रूप में जमीन दी गई थी। वे हिंदी की सादरी बोली बोलते हैं।
महत्वपूर्ण जन्संख्या वाले क्षेत्र | Regions with significant populations |
---|
झारखंड, छत्तीसगढ़, ओडिशा, बिहार | Jharkhand, Chhattisgarh, Odisha, Bihar |
भाषा/Language |
• नागपुरी • हिन्दी / .Nagpuri, Hindi |
धर्म /Religion |
हिन्दू | Hinduism |
Firstpost
किसी ज़माने में राजे- महाराजे से कम ना थे. झारखण्ड छोटानागपुर में जमीन- जायदाद का ज्यादातर हिस्सा इन्हीं के नाम पर था. अपने नाम के अंत में बस इन्हीं को भगत व सिंह लगाने का हक़ था. जुताई के लिए भैसों की कमी न थी. धान, खेतीबारी भी खूब होते थे. पंचायत चलाना और पंचयती बैठको में इन्हें बुलाना व सुझाव लेना अत्यंत महत्वपूर्ण समझा जाता था. पर यह सब बस किस्से बन चुके है. किसी को याद भी नहीं उनके पूरखे कितने शानो शौकत से जिया करते थे. फिर भी खुद को ऊँचा दिखाने की कसर नहीं छोड़ते.
जिनकी तुलना हरयाणा दिल्ली के ऊँचे जाट के तरह तो बिलकुल ही नहीं की जा सकती. समय बदला, रौतियों के जमीन आपस में बंट गये या तो गैर आदिवासियों को दे/बेच दिया. समय का चक्र ऐसा चला की वो काफी ज्यादा पिछड़ गए; चाहे वो जमीन, कृषि, शिक्षा, सम्मान या धन का क्षेत्र हो. उनके ओहदे को किसी की नज़र सी लग गयी.
देर आये दुरुस्त आये! २०१६ से रौतियों की आँख खुली तो खुद को एक साजिश के तहत अनुसूचित जनजाति के सूची में नहीं पाया. उनको बात समझ आ गयी की इस आधुनिक युग में सम्मान वापस पाना होगा. पढ़ाई जरुरी है और रोजगार पाना भी, नौकरी करनी जरुरी है. मगर कैसे?