Sahara: The Untold Story

Book Review: Sahara: The Untold Story In Hindi

Book Review: Sahara: The Untold Story

Author: Tamal Bandyopadhyay
Genre: Non-Fiction, Business

Tamal Bandyopadhyay’s Sahara: The Untold Story unpacks the enigmatic journey of the Sahara Group, one of India’s most controversial corporate entities. Known for its grandeur, secrecy, and unprecedented rise, Sahara has also been a subject of intense regulatory and legal scrutiny. The book provides a detailed account of the company’s growth, its unique business model, its tussle with the Securities and Exchange Board of India (SEBI), and the larger-than-life persona of its founder, Subrata Roy. Through sharp analysis and meticulous research, Bandyopadhyay takes readers into the heart of a corporate saga that has fascinated and puzzled the nation for decades.

Synopsis

The Sahara Group started as a modest financial venture in the 1970s and grew into a business empire spanning industries such as real estate, media, hospitality, and finance. Its success was built on a financial model that tapped into the savings of millions of small investors, particularly from rural India. However, this very model eventually attracted regulatory attention, leading to a protracted legal battle with SEBI.

The book traces the rise and fall of the Sahara Group, focusing on its OFCD (Optionally Fully Convertible Debenture) scheme, which raised billions but fell afoul of India’s financial laws. The Supreme Court ruling against Sahara, the arrest of Subrata Roy, and the group’s subsequent struggles form the crux of the narrative.

Themes and Highlights

  1. The Sahara Growth Story
    Bandyopadhyay explores how Sahara rose from a small deposit-collecting firm to a sprawling conglomerate. The book highlights the group’s innovative financial approach, targeting investors from rural and semi-urban areas. This model brought financial inclusion to many but also raised concerns about transparency and accountability.
  2. Legal and Regulatory Struggles
    A substantial portion of the book delves into Sahara’s legal battle with SEBI. The regulatory body accused Sahara of raising funds illegally through OFCDs, leading to a landmark Supreme Court ruling. Bandyopadhyay breaks down the complexities of the case, offering a clear picture of the regulatory challenges faced by the group.
  3. The Charisma of Subrata Roy
    Subrata Roy’s personality is central to the book. Bandyopadhyay portrays him as a visionary entrepreneur and a master strategist who cultivated an image of a benevolent leader. Roy’s connections with political figures, celebrities, and influential individuals add another layer to his enigmatic persona.
  4. Sahara’s Impact on Society
    Beyond its controversies, the book acknowledges Sahara’s role in providing financial opportunities to underserved communities. Its sponsorships, contributions to sports, and real estate projects are examples of its broader social and economic impact.

Writing Style and Research

Tamal Bandyopadhyay employs a journalistic approach, combining data, legal documents, and interviews to craft a well-researched narrative. The writing is clear and concise, making complex financial concepts accessible to a general audience. The book balances hard facts with storytelling, ensuring that readers remain engaged throughout.

However, Bandyopadhyay’s research is occasionally constrained by the inherent secrecy of Sahara’s operations. While the book provides a wealth of information, some aspects remain speculative due to limited access to the group’s internal workings.


Sahara

Sahara: The Untold Story
Sahara: The Untold Story

 

पुस्तक समीक्षा: सहारा: द अनटोल्ड स्टोरी

लेखक: तमाल बंद्योपाध्याय
शैली: नॉन-फिक्शन, व्यापार

परिचय

तमाल बंद्योपाध्याय की पुस्तक सहारा: द अनटोल्ड स्टोरी भारत के सबसे विवादास्पद और रहस्यमय कारोबारी साम्राज्य, सहारा ग्रुप की कहानी को उजागर करती है। सहारा ग्रुप, जिसकी शुरुआत छोटे स्तर से हुई थी, समय के साथ एक विशाल और प्रभावशाली कारोबारी संगठन में बदल गया। यह पुस्तक सहारा के अद्वितीय वित्तीय मॉडल, इसके संस्थापक सुब्रत रॉय की करिश्माई शख्सियत, और समूह पर लगे कानूनी और नियामक आरोपों की गहराई से पड़ताल करती है। तमाल बंद्योपाध्याय ने गहन शोध और पत्रकारिता की धार के साथ एक ऐसा वृत्तांत पेश किया है, जो सहारा के उत्थान और पतन की कहानी को बड़े ही दिलचस्प तरीके से सामने लाता है।

सारांश

1970 के दशक में शुरू हुआ सहारा ग्रुप आज एक बड़े व्यापारिक साम्राज्य के रूप में जाना जाता है, जिसका प्रभाव रियल एस्टेट, मीडिया, हॉस्पिटैलिटी और फाइनेंस जैसे कई क्षेत्रों में है। इस समूह की सफलता का आधार इसके अनोखे वित्तीय मॉडल में छिपा था, जिसने छोटे और ग्रामीण निवेशकों को आकर्षित किया। लेकिन यही मॉडल इसकी सबसे बड़ी चुनौती भी बन गया, क्योंकि इसकी पारदर्शिता और वित्तीय व्यवहारों पर सवाल उठाए गए।

पुस्तक सहारा के उस वित्तीय मॉडल को विस्तार से समझाती है, जिसने इसे विशाल बनाया, लेकिन इसे कानून के घेरे में भी खड़ा कर दिया। विशेष रूप से, सेबी (SEBI) के साथ इसके विवाद, सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक निर्णय, और सुब्रत रॉय की गिरफ्तारी जैसे पहलुओं पर लेखक ने गहराई से प्रकाश डाला है।

मुख्य विषय और आकर्षण

  1. सहारा का विकास
    पुस्तक सहारा ग्रुप के एक छोटे डिपॉजिट-कलेक्शन फर्म से एक बहुआयामी व्यवसाय बनने की कहानी को बारीकी से पेश करती है। यह दर्शाती है कि सहारा ने ग्रामीण और अर्ध-शहरी निवेशकों के पैसे को कैसे एकत्रित किया और उन्हें अपने अनोखे वित्तीय मॉडल से जोड़े रखा।
  2. कानूनी और नियामक चुनौतियां
    पुस्तक का एक बड़ा हिस्सा सहारा और सेबी के बीच हुए विवाद पर केंद्रित है। लेखक ने स्पष्ट रूप से समझाया है कि सहारा के ऑप्शनल फुली कन्वर्टिबल डिबेंचर्स (OFCDs) को लेकर कानूनी समस्याएं कैसे शुरू हुईं और सुप्रीम कोर्ट तक मामला कैसे पहुंचा।
  3. सुब्रत रॉय की करिश्माई शख्सियत
    सहारा ग्रुप के केंद्र में इसके संस्थापक सुब्रत रॉय हैं। तमाल बंद्योपाध्याय ने उनकी करिश्माई और विवादास्पद शख्सियत को बेहद संतुलित तरीके से पेश किया है। उनकी नेतृत्व क्षमता, उनकी दूरदर्शिता, और उनकी विवादों से भरी यात्रा को पुस्तक में बड़े ही रोचक तरीके से चित्रित किया गया है।
  4. सहारा का सामाजिक प्रभाव
    सहारा की आलोचनाओं के बावजूद, यह पुस्तक यह भी स्वीकार करती है कि इसने ग्रामीण और वंचित समुदायों को वित्तीय अवसर प्रदान किए। इसके स्पोर्ट्स स्पॉन्सरशिप, रियल एस्टेट प्रोजेक्ट्स, और सामाजिक योगदान इसके व्यापक प्रभाव को दिखाते हैं।

लेखन शैली और शोध

तमाल बंद्योपाध्याय ने एक पत्रकार की तरह गहरी पड़ताल करते हुए पुस्तक लिखी है। उन्होंने डेटा, कानूनी दस्तावेजों और साक्षात्कारों का सहारा लिया है, जिससे पुस्तक तथ्यात्मक रूप से मजबूत और जानकारीपूर्ण बन गई है। लेखक की शैली सरल और प्रवाहपूर्ण है, जिससे जटिल वित्तीय और कानूनी अवधारणाओं को भी आसानी से समझा जा सकता है।

हालांकि, सहारा की गोपनीयता और संगठनात्मक रहस्यों के कारण कुछ पहलुओं को विस्तार से नहीं समझाया जा सका है। लेकिन इसके बावजूद, पुस्तक सहारा ग्रुप के बारे में एक संतुलित और व्यापक दृष्टिकोण प्रस्तुत करती है।

SAHARA: सहारा के 4.20 लाख जमाकर्ताओं को मिले 362.91 करोड़ रुपये

नयी दिल्ली। सहकारिता मंत्री अमित शाह ने बुधवार को राज्यसभा को बताया कि इस वर्ष 16 जुलाई तक सहारा समूह की सहकारी समितियों के 4.20 लाख से अधिक जमाकर्ताओं को 362.91 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया है। शाह ने एक सवाल के लिखित जवाब में राज्यसभा को यह जानकारी दी।

Amit Shah
सहारा के 4.20 लाख जमाकर्ताओं को मिले 362.91 करोड़ रुपये

शाह ने बताया कि यह वितरण ‘सीआरसीएस-सहारा रिफंड पोर्टल’ के माध्यम से किया गया है, जिसे 29 मार्च, 2023 को सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद शुरू किया गया था। इस पोर्टल का उद्देश्य वैध जमाकर्ताओं को उनके धन का भुगतान करने में सहायता करना है।

सहारा समूह की सहकारी समितियों में जिन जमाकर्ताओं को धनराशि का भुगतान किया गया है, वे शामिल हैं:

सहारा क्रेडिट कोऑपरेटिव सोसाइटी लिमिटेड, लखनऊ
सहारायन यूनिवर्सल मल्टीपर्पज सोसाइटी लिमिटेड, भोपाल
हमारा इंडिया क्रेडिट कोऑपरेटिव सोसाइटी लिमिटेड, कोलकाता
स्टार्स मल्टीपर्पज कोऑपरेटिव सोसाइटी लिमिटेड, हैदराबाद

शाह ने बताया कि वर्तमान में, आधार से जुड़े बैंक खाते के जरिये सत्यापित दावों पर प्रत्येक वास्तविक जमाकर्ता को केवल 10,000 रुपये तक का भुगतान किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि यह सुनिश्चित करने के लिए कि धनराशि सही व्यक्ति तक पहुंचे, सभी प्रक्रियाओं को पूरी पारदर्शिता और उचित पहचान के आधार पर संचालित किया जा रहा है।

सुप्रीम कोर्ट का आदेश और पोर्टल की शुरुआत
सुप्रीम कोर्ट ने 29 मार्च, 2023 को अपने आदेश में सहकारी समितियों के केंद्रीय रजिस्ट्रार (सीआरसीएस) को 5000 करोड़ रुपये की राशि सहारा-सेबी रिफंड खाते से जमाकर्ताओं के वैध दावों के लिए हस्तांतरित करने का निर्देश दिया था। इस आदेश के तहत सीआरसीएस-सहारा रिफंड पोर्टल लॉन्च किया गया था, जो जमाकर्ताओं के दावों को डिजिटल और कागज़ रहित तरीके से संसाधित करता है।

प्रक्रिया और निगरानी
इस संवितरण प्रक्रिया की निगरानी और देखरेख न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति आर. सुभाष रेड्डी द्वारा की जा रही है, जिनकी सहायता के लिए विद्वान अधिवक्ता श्री गौरव अग्रवाल को एमिकस क्यूरी नियुक्त किया गया है। यह सुनिश्चित किया गया है कि प्रत्येक दावे का निपटारा पारदर्शी तरीके से हो और वास्तविक जमाकर्ताओं को उनकी धनराशि सीधे उनके आधार से जुड़े बैंक खाते में प्राप्त हो।

शाह ने यह भी कहा कि यदि पोर्टल पर आवेदन में कोई कमी पाई जाती है, तो जमाकर्ताओं को पहले से लॉन्च किए गए पुनः-प्रस्तुति पोर्टल के माध्यम से अपना आवेदन पुनः प्रस्तुत करने के लिए सूचित किया जा रहा है।

वर्तमान प्रगति
सहारा समूह की सहकारी समितियों के जमाकर्ताओं को अब तक 362.91 करोड़ रुपये का भुगतान किया जा चुका है, जिससे 4.20 लाख से अधिक जमाकर्ताओं को लाभ हुआ है। यह एक महत्वपूर्ण प्रगति है और दर्शाता है कि सरकार और न्यायालय जमाकर्ताओं के हितों की सुरक्षा के प्रति प्रतिबद्ध हैं।

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