Kashmir Aur Kashmiri Pandit: Basne Aur Bikharne Ke 1500 Saal The Kashmir Files


The kashmir File


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Review
यह किताब कश्मीर के उथल-पुथल भरे इतिहास में कश्मीरी पण्डितों के लोकेशन की तलाश करते हुए उन सामाजिक-राजनैतिक प्रक्रियाओं की विस्तार से विवेचना करती है जो कश्मीर में इस्लाम के उदय, धर्मांतरण और कश्मीरी पण्डितों की मानसिक-सामाजिक निर्मिति तथा वहाँ के मुसलमानों और पण्डितों के बीच के जटिल रिश्तों में परिणत हुए।
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यह किताब आज़ादी की लड़ाई के दौरान विकसित हुए उन अंतर्विरोधों की भी पहचान करती है जो आज़ाद भारत के भीतर कश्मीर, जम्मू और शेष भारत के बीच बने तनावपूर्ण सम्बन्धों और इस रूप से कश्मीर घाटी के भीतर पण्डित-मुस्लिम सम्बन्धों ने आकार लिया।
नब्बे के दशक मे पण्डितों के विस्थापन के लिए जिम्मेदार परिस्थितियों की विस्तार से विवेचना करते हुए यह किताब विस्थापित पण्डितों के साथ ही उन कश्मीरी पण्डितों से संवाद स्थापित करती है जिन्होंने कभी कश्मीर नहीं छोड़ा और उनके वर्तमान और भविष्य के आईने में कश्मीर को समझने की कोशिश करती है।
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धारा 370 हटाए जाने से पहले और बाद में, दोनों स्थितियों में, घाटी में रह रहे पंडितों के आख्यान को शामिल करनेवाली यह पहली किताब है जिसके लिए लेखक ने कश्मीर के विभिन्न इलाक़ों में यात्राएँ की हैं और पंडित परिवारों से विस्तार से बातचीत की है।
कश्मीर के इतिहास और समकाल के विशेषज्ञ के रूप में सशक्त पहचान बन चुके अशोक कुमार पांडेय का जन्म 24 जनवरी, 1975 को पूर्वी उत्तर प्रदेश के मऊ ज़िले के सुग्गी चौरी गाँव में हुआ। ये गोरखपुर विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में परास्नातक हैं। कविता, कहानी और अन्य कई विधाओं में लेखन के साथ-साथ अनुवाद कार्य भी करते हैं। इनकी पुस्तक ‘कश्मीरनामा’ विद्वानों और आम पाठकों द्वारा समान रूप से ख़ूब सराही गई है।
भारतीय संविधान की अधिकांश धाराएँ जम्मू-कश्मीर में भी लागू की गईं।
जम्मू-कश्मीर के प्रमुख राजनीतिक दल प्रजा परिषद् ने पिछली शताब्दी के पाँचवें दशक में राज्य के विभिन्न मुद‍्दों को लेकर एक ऐतिहासिक आंदोलन चलाया था। इस आंदोलन में हजारों सत्याग्रही कारागार में बंद रहे। पंद्रह सत्याग्रहियों ने पुलिस की गोलियों का शिकार होकर शहादत प्राप्‍त की।
भारतीय जनसंघ के संस्थापक अध्यक्ष डॉ. श्यामा प्रसाद मुकर्जी इसी आंदोलन का समर्थन करते हुए जम्मू-कश्मीर सरकार द्वारा गिरफ्तार किए गए। श्रीनगर की जेल में उनकी रहस्यमय परिस्थितियों में मृत्यु हो गई। प्रजा परिषद् के इस आंदोलन का मुख्य स्वर यह था कि एक ही देश में दो संविधान; दो ध्वज और दो प्रधान नहीं हो सकते हैं।
प्रजा परिषद् राज्य में भारतीय संविधान को पूर्ण रूप से लागू करने की प्रबल समर्थक थी। यह प्रजा परिषद् के आंदोलन का ही परिणाम था कि विदेशी शक्‍तियों के चंगुल में फँस रहे शेख अब्दुल्ला को उन्हीं की पार्टी नेशनल कॉन्फ्रेंस ने त्याग दिया; जिसके कारण उन्हें राज्य के प्रधानमंत्री पद से अपदस्थ करना पड़ा।
परंतु प्रजा परिषद् के इस ऐतिहासिक आंदोलन का इतिहास अभी तक लिखा नहीं गया था; और न ही उसका वैज्ञानिक व‌िश्‍लेषण हुआ था। जम्मू-कश्मीर का यह एक ऐसा अध्याय है; जिसे समझे और जाने बिना राज्य के मनोविज्ञान को नहीं समझा जा सकता।
प्रस्तुत ग्रंथ राज्य की उसी अनकही कहानी को प्रकाश में लाने का एक महत्त्वपूर्ण प्रयास है।
Kuldeep Chand Agnihotri
Kuldeep Chand Agnihotri
जन्म : 26 मई, 1951
शिक्षा : बी.एस-सी., हिंदी साहित्य और राजनीति विज्ञान में एम.ए.; गांधी अध्ययन, अनुवाद, तमिल, संस्कृत में डिप्लोमा; पंजाब विश्‍वविद्यालयसे आदिग्रंथ आचार्य की उपाधि एवं पी-एच.डी.।
कृतित्व : अनेक वर्षों तक अध्यापन कार्य, पंद्रह वर्षों तक बाबा बालकनाथ स्नातकोत्तर महाविद्यालय (हि.प्र.) में प्रधानाचार्य रहे। उसके बाद हिमाचल प्रदेश विश्‍वविद्यालय के धर्मशाला क्षेत्रीय केंद्र के निदेशक रहे। हिमाचल प्रदेश में दीनदयाल उपाध्याय महाविद्यालय की स्थापना की। आपातकाल में जेलयात्रा, पंजाब में जनसंघ के विभाग संगठन मंत्री तथा अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् के सचिव रहे। लगभग दो दर्जन से अधिक देशों की यात्रा; पंद्रह से भी अधिक पुस्तकें प्रकाशित। पत्रकारिता में कुछ समय ‘जनसत्ता’ से भी जुड़े रहे। संप्रति : भारत-तिब्बत सहयोग मंच के अखिल भारतीय कार्यकारी अध्यक्ष और दिल्ली में ‘हिंदुस्तान’ समाचार से संबद्ध।
*अन्य लेखकों की प्रसिद्ध कृतियां भी इसमें सम्मिलित हैं।
Kashmir Aur 1947-48 ka Bharat-Pak Yuddh by Rishi Raj
1965 Bharat-Pak Yuddh by Rishi Raj
Bharat-Pak Kargil Yuddh by Rishi Raj
Balakot Airstrike Ki Shaurya Gatha by Mahesh Dutt Sharma
Kashmir Aur 1947-48 ka Bharat-Pak Yuddh by Rishi Raj
भारत और पाकिस्तान के बीच विवाद का केंद्र कश्मीर समस्या थी।
वर्ष 1947 में जब भारत का विभाजन हुआ था, मुस्लिम बहुल कश्मीर के हिन्दू शासक महाराजा हरि सिंह ने स्वतंत्र कश्मीर राज्य का सपना देखा था। हालांकि सितंबर 1947 में जब कश्मीर के पश्चिमी हिस्से में मुसलमानों की हत्या की गई, तब राज्य में विभाजन के दंगे भड़क गए। इसकी वजह से राज्य की जनता ने महाराजा के खिलाफ विद्रोह कर दिया और खुद के आजाद कश्मीर सरकार की घोषणा कर दी।
1965 Bharat-Pak Yuddh by Rishi Raj
भारत के विभाजन में नदी जल बंटवारे को लेकर भी विवाद हुआ था । लगभग सभी नदियों – सिंधु, चिनाब, सतलुज, ब्यास और रावी का पानी भारत से होकर गुजरता है। वर्ष 1948 में भारत ने इन नदियों के पानी को बंद कर दिया था।
वर्ष 1960 में नेहरू और अयूब खान के बीच हुए सिंधु जल संधि द्वारा इस विवाद का अंत हुआ। इसके बाद पाकिस्तान झेलम, चेनाब और सिंधु नदी का पानी इस्तेमाल कर सकता था जबकि भारत सतलुज, ब्यास और रावी नदियों का।
कारगिल युद्ध, जिसे ऑपरेशन विजय के नाम से भी जाना जाता है, भारत और पाकिस्तान के बीच मई और जुलाई 1999 के बीच कश्मीर के करगिल जिले में हुए सशस्त्र संघर्ष का नाम है। भारतीय सेना और वायुसेना ने पाकिस्तान के कब्ज़े वाली जगहों पर हमला किया और धीरे-धीरे अंतर्राष्ट्रीय सहयोग से पाकिस्तान को सीमा पार वापिस जाने को मजबूर किया।
Balakot Airstrike Ki Shaurya Gatha by Mahesh Dutt Sharma
जब पाकिस्तान ने अपने वतन में मौजूद आतंकवादियों पर कोई काररवाई नहप की; तो अपनी आगामी सुरक्षा को ध्यान में रखते हुये; भारत ने स्वयं पाकिस्तान में मौजूद आतंकवादियों पर काररवाई की। और अपने जवानो की शहादत के मात्र बारह दिन बाद भारत ने पाकिस्तान बॉर्डर में प्रवेश कर एयर स्टाइक की। यह स्ट्राइक पुलवामा अटैक के बाद एकदम से प्लान की गई स्ट्राइक थी।
कश्मीर का सच‘ पुस्तक नहीं दस्तावेज है। यह वादियों की ठंडक और मिजाज की गर्मी का अहसास कराती है। पुस्तक उन सवालों का भी जवाब देती है, जिसने धरती के इस ‘स्वर्ग’ को वर्तमान स्थिति में पहुँचाया। किताब का हर अध्याय एक नई कहानी को पिछली कहानी से जोड़ते हुए सामने लाता है। आधुनिक भारत के इतिहास और कश्मीर पर मौलिक अंश पढ़ने, लिखने तथा शोध करने वाले विद्यार्थियों और रुचिधरताओं के लिए भी यह किताब मील का पत्थर साबित होगी। इसके अलावा निश्चित ही यह उनके लिए एक सहेज के रखे जाने वाला अनमोल उपहार है। नवीन जी की कश्मीर और कश्मीर के इर्द-गिर्द के घटनाक्रमों पर विशेष रुचि का ही परिणाम पुस्तक ‘कश्मीर का सच’ है।

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