एनसीईआरटी [NCERT] के पूर्व निदेशक ने कहा – हर स्तर पर नए पाठ्यक्रम का गठन किया जाएगा; एडहॉक शिक्षकों की नियुक्ति टूट जाएगी।NCERT director

 

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2021 में विभिन्न सेक्टर कैसे होंगे? उनके सामने क्या चुनौतियां हैं और इन क्षेत्रों में क्या बड़े बदलाव हैं? नए साल के मौके पर हम आपके सामने ला रहे हैं देश के जाने-माने विशेषज्ञों की राय इन मुद्दों पर। कल देश की अर्थव्यवस्था पर, अरुण कुमार की राय के बारे में प्रो। आज यह शिक्षा क्षेत्र है।

2021 में विभिन्न सेक्टर कैसे होंगे? उनके सामने क्या चुनौतियां हैं और इन क्षेत्रों में क्या बड़े बदलाव हैं? नए साल (new year)के मौके पर हम आपके सामने ला रहे हैं देश के जाने-माने विशेषज्ञों(expert) की राय इन मुद्दों पर। कल देश की अर्थव्यवस्था(Economy)  पर, अरुण कुमार(Arun kumar) की राय के बारे में प्रो। आज यह शिक्षा क्षेत्र है।

तो आइए जानते हैं कि एक शिक्षाविद् और राष्ट्रीय शिक्षा अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (NCERT) के पूर्व निदेशक जगमोहन सिंह राजपूत का शिक्षा क्षेत्र पर क्या कहना है …

2020 में, हर किसी का जीवन किसी न किसी तरह से कोरोना से प्रभावित था, लेकिन इसने इस समझ को भी बढ़ा दिया कि मानव के पास आपदाओं, अच्छी शिक्षा और सकारात्मक सोच से निपटने का सबसे शक्तिशाली साधन है। इनके माध्यम से मनुष्य हर समस्या और आपदा का समाधान पा सकता है।

इस आधार पर कोरोना वैक्सीन की खोज भी की जा सकती है। भारत इसमें अपनी भागीदारी पर गर्व कर सकता है और ज्ञान विज्ञान के क्षेत्र में अपने युवाओं और वैज्ञानिकों का आभारी हो सकता है।

कोरोना ने ऑनलाइन सीखने के महत्व को भी समझाया है। लेकिन, इसकी कमियां भी सामने आई हैं। यह भी स्पष्ट था कि भारत अभी सभी स्तरों पर इसे लागू करने की स्थिति में नहीं है। ऑन-लाइन सीखना(online learning)  उपयोगी है, लेकिन आमने-सामने(one-two) और साथ-साथ सीखने का कोई विकल्प(option) नहीं है।

2021 के पहले दिन बोर्ड परीक्षा की घोषणा पर देशव्यापी चर्चा हुई। इससे पहले, 34 वर्षों के लंबे इंतजार के बाद, 29 जुलाई को घोषित नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति ने भी काफी सुर्खियाँ बटोरी थीं। इसके कारण 2021 में शिक्षा के क्षेत्र में बड़े बदलाव देखने को मिलेंगे।

बोर्ड स्तर पर एक राष्ट्र-एक परीक्षा

उम्मीद है कि 2021 में बोर्ड और प्रतियोगी परीक्षाओं में देरी हो सकती है, लेकिन वे बाधित नहीं होंगे। बच्चों को घुमाने की प्रक्रिया सामान्य रूप से चल पाएगी। इस समय बोर्ड स्तर(bord level) पर वन नेशन-वन परीक्षा(one nation-one exam) जैसी संभावनाओं का पता लगाना आवश्यक(important) है। इसमें कई मूलभूत परिवर्तन सुझाए गए हैं। इसलिए, पॉलिसी को पूरी तरह से लागू करने में कई साल लगेंगे और इसे लेना चाहिए।यह प्रतियोगी परीक्षाओं में पहले से ही लागू है। भविष्य की शिक्षा भारत की संस्कृति की गहराई में जाएगी। सामाजिक समरसता और भाईचारे को बढ़ावा दिया जाएगा। सकारात्मकता नई शिक्षा नीति का आधार है, इसमें सभी को भाग लेना चाहिए।

प्राथमिक शिक्षा नीति स्तर पर जोर देती है

भारत में आधे से अधिक(more thane half) बच्चों को अच्छी शिक्षा(better education) और उपयुक्त वातावरण( enviorment) नहीं मिलता है। अगर इन बच्चों को भी अपनी प्रतिभा(talent) को निखारने का अवसर(opportunity) मिलता, तो भारत(India) बौद्धिक संपदा में दुनिया(world) में सबसे आगे होता। यह भारत की नई शिक्षा नीति के सामने सबसे बड़ी चुनौती है। पहली बार, यह नीति के स्तर पर स्वीकार किया गया था कि बच्चे के प्रारंभिक तीसरे, चौथे और पांचवें वर्ष उसके विकास के लिए सबसे महत्वपूर्ण हैं।

बच्चों को समझने का यह सही समय है। इस आधार पर, उसके हितों और प्राकृतिक प्रतिभा के विकास की नींव रखी जा सकती है। यह स्वीकार किया गया है कि प्रत्येक बच्चे की क्षमताओं के लिए स्वीकृति, मान्यता और प्रयास आवश्यक है। कुल मिलाकर, प्री-स्कूल के तीन साल और बाद में कक्षा 1 और 2 की शिक्षा एक ठोस बाल आधार के निर्माण में आवश्यक है।

वर्ष 2021 में, यह आशा की जानी चाहिए कि केंद्र और राज्य सरकारों को इस दिशा में आवश्यक कदम उठाने चाहिए और इस बहु-आवश्यक जिम्मेदारी के एक बड़े हिस्से को पूरा करना चाहिए। इसके लिए लोगों को प्रशिक्षित किया जाना है। व्यवस्था में बदलाव के लिए एक वातावरण भी तैयार करना होगा। चार साल से अधिक समय में, लाखों लोगों और संस्थानों के सुझावों के साथ बनाई गई नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति को सार्वभौमिक समर्थन मिला है। इसने बेहतर शिक्षा से संबंधित सभी समस्याओं का समाधान प्रदान करने की कोशिश की है, लेकिन इसके अपवाद भी होंगे।

इस वर्ष में कई बदलाव किए जाएंगे। 

  • नई शिक्षा नीति को लागू करने पर काम 2021 में शुरू होगा। उम्मीद है कि यह …

  • 2022 में सामान का बोझ(weight) कम हो जाएगा।बोर्ड परीक्षा(board exam) का तनाव(tension) कम होगा।
  • परीक्षा छूटने से मुक्ति मिलेगी।
  • पढ़ाई के उपयोग पर अधिक जोर होगा। 
  • समस्या को हल करने के लिए सीखना आवश्यक होगा।
  • क्षमता, रचनात्मकता और जिज्ञासा का विश्लेषण करने पर जोर होगा।
  • सिलेबस और एक्स्ट्रा करिकुलर(extra corricolum activity)जैसे विभाजन अर्थहीन(meaningless) हो जाएंगे।
  • जीवन कौशल पर जोर दिया जाएगा।
  • इनोवेशन और रिसर्च के लिए पोस्ट-ग्रेजुएशन तक इंतजार नहीं करना पड़ता।

आसानी से सुलभ सरकारी शिक्षा की व्यवस्था करनी होगी

  • सभी सरकारों(government) को एक मजबूत,(strong) गतिशील, जीवंत और आसानी से उपलब्ध सरकारी शिक्षा(government education) प्रणाली के विकास(development) में आवश्यक निवेश(invest) करना चाहिए।
  • अगले वर्ष से, शिक्षा पर सकल घरेलू उत्पाद का 6% खर्च करने का लक्ष्य पूरा करें। इससे शिक्षा का व्यवसायीकरण नियंत्रित होगा।
  • केवल वे लोग जो भारत को समझते हैं, उनका स्वागत शिक्षा निवेश के क्षेत्र में किया जाना चाहिए। यहां के लोगों की मानसिकता और उम्मीदों को कौन महत्व दे सकता है। जिनका उद्देश्य(aim) लाभ कमाने(earning profit) तक सीमित नहीं है।

नया सिलेबस बनाने की प्रक्रिया सभी स्तरों पर शुरू होगी

इस साल नए सिलेबस(syllabus) बनाने की प्रक्रिया(Process) हर स्तर पर शुरू होगी। नई शिक्षा नीति का मूल आधार इसमें शामिल किया जाएगा। इसमें, ज्ञान की अखंडता पर विचार करना और इसके समन्वय की गहरी समझ के साथ आगे बढ़ना आवश्यक है। अब विषय के संबंध में कोई प्रतिबंध नहीं होगा। कोई भी छात्र भौतिक विज्ञान के साथ संगीत या अन्य किसी भी विषय को ले सकता है।प्रारंभिक वर्ष में, मातृभाषा में शिक्षा की आवश्यकता पर जोर दिया गया है। इसके साथ ही बहुभाषी शिक्षा को महत्व देने और इसके लिए आवश्यक व्यवस्था करने के लिए भी कदम उठाए जाएंगे।
4 साल के पाठ्यक्रम दो साल के भीतर उच्च शिक्षा में शुरू होंगे
अगले 2 वर्षों में उच्च शिक्षा में 4 वर्षीय पाठ्यक्रम शुरू होना चाहिए। अनुसंधान को बढ़ावा देने के लिए, छात्रों के सामने आने वाले संसाधनों की समस्याओं को दूर करने के लिए कई व्यवस्थाएं की जाएंगी। नेशनल रिसर्च फाउंडेशन(national research foundation) की स्थापना(एस्टेब्लिशमेंट) एक अभिनव प्रयास होगा।
यूजीसी, एनसीटीई, एआईसीटीई जैसे नियामक नए तरीके से काम करेंगे
उच्च शिक्षा में नियामक संस्था जैसे यूजीसी, एनसीटीई, एआईसीटीई अब अपने नए ढांचे में संलग्न होंगे। कई नियामकों को एक केंद्र बिंदु पर लाया जाएगा और कार्य के सभी क्षेत्रों को पूरी तरह से परिभाषित किया जाएगा। अकादमिक संस्थानों को दी गई स्वायत्तता को अधिक व्यावहारिक रूप दिया जाएगा।
  • शिक्षा का वैश्विक केंद्र बनाने की दिशा में बड़े फैसले किए जाएंगे।
  • शिक्षकों की नियुक्ति और प्रशिक्षण में बदलाव होंगे।
  • अनियमित शिक्षक(teacher) भर्ती(recruitment) की परंपरा(culture) खत्म होने की उम्मीद।

शिक्षकों को अनियमित या थोड़े मानदेय(Irregular or slightly honorarium) पर नियुक्त(recruit) करने की प्रथा को समाप्त किया जाएगा। क्योंकि, जब देश में 10-12 लाख(lakh) शिक्षकों के पद खाली हैं और लगभग(aprox) शिक्षकों से भरे हुए हैं, तो शिक्षा की गुणवत्ता(quality) में गिरावट आती है। देश ने इसका अनुभव किया है। शिक्षा नीति ने इस पर भी आवश्यक संज्ञान लिया है। यदि देश शिक्षकों को उचित प्रशिक्षण(training) और सम्मान दे सकता है तो शिक्षा प्रणाली की कई कमियाँ अपने आप ही दूर हो जाएंगी।

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